भारत में समान नागरिक संहिताः वाद-विवाद एवं परिचर्चा
प्रस्तुत लेख भारत के संविधान के निति निर्देशक तत्वों में समान नागरिक संहिता की अवधारणा पर विभिन्न तर्क और विमर्श का अध्ययन करता है। समान नागरिक संहिता को हमेशा एक प्रभावी उपकरण के रूप में प्रदर्शित किया गया है भारतीय महिलाओं का सशक्तिकरण, उनके उत्थान एवं परिवार और विवाह जैसी संस्थाओं में महिलाओं की समान हिस्सेदारी जैसे मुद्दों को अमली जामा पहनाना, समान नागरिक संहिता का उद्देश्य है। यह लेख समान नागरिक संहिता के इर्द-गिर्द प्रमुख वाद-विवाद का मूल्यांकन करता है। लेख मुख्य रूप से डॉ भीम राव अंबेडकर के विचारों के परिप्रेक्ष्य में समान नागरिक संहिता की आवश्यकताओं को रेखांकित करता है। साथ ही इस मुद्दे की पड़ताल करता है के कैसे बुद्धिजीवियों ने समान नागरिक संहिता को समझने की कोशिश करि है और इसको लेकर कितनी भ्रांतियां समाज में मौजूद हैं। समान नागरिक संहिंता समाज में विभिन्न धर्मों के मध्य लैंगिक समानता स्थापित करने का एक यंत्र है और इसे लागू हो जाना चाहिए।